Sunday, November 19, 2006

Lage Raho Munnabhai.. bole to zakaas

तो क्या बोल रेहेला था अापुन ? अाज अापुनने एक मस्त सिनेमा देखा। काफी टायम से अापुन का पंटर लोग बोल रहा था की भिडु एक बार मुन्नाकी गांधीगीरी देख लो। एकदम हिट पिक्चर हैं। तो अाज अापुन ने टाईम निकालके डीक्स पे पिक्चर देखा। दिल खुश हो गया बाप! बनानेवाले ने भी क्या सोच के चिज बनायी हैं। कॉमेडी, अॅक्शन, ड्रामा, रोमान्स, सब मसाला तो हैं ही, अैार साथमें फंडु ....... क्या बोलतें हें हा !! फिलॉसॉफि, भी। साला रात दिन मुम्बई के तेज बाउन्सर से दिमाग का दही होता हैं, पर बापु के गुगली ने कब अपनी विकेट ली, पत्ताच नाही चला। ये सिनेमा पहेले मुन्नाभाई एम बी बी एस से कुछ वास्ता नही रखता हैं। मतबल ये के, मुन्ना अैार सर्कीट वापस से अकेले हैं अौर अपने भाईगीरी में व्यस्त हैं। पर हाय ये कम्बख्त दिल कब कीसीके पे अाता हैं वो बोलके थोडे ही ना? तो मुन्ना भी लट्टु हो गया हें, जान्हवी पर, अब उसे पहेले मिलने अौर फिर पटाने के चक्कर में मुन्ना बनता हैं प्रोफेसर अौर पढने लगता हैं बापुजी के विचार, अैार उस में उसे बापुजी दर्शन भी देने लगते हैं। अब अाता हैं कहानी में ट्वीस्ट, मतबल ये के बभूआ, एक कमीना विलैन जो जान्हवी अौर उसके दादाजी का मकान हडपना चाहता हैं। अब मुन्ना जान्हवी को सच बतायेगा?, क्या गांधीगीरी से वो जान्हवी का प्यार अौर मकान दोनो हासील कर पायेगा? बॉस, सब इस्टोरी मैं ही बोलेगा, तो तुम क्या करेगा, मामु? जा जाके पिक्चर देख, वट ले, वट ले।

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